स्टोक का नियम ~ Stoke’s Law
” सर जॉर्ज ग्रेबियल स्टोक” नामक वैज्ञानिक ने यह सिद्ध किया कि, जब r त्रिज्जा वाली कोई छोटी गोलाकार वस्तु श्यानता गुणांक η वाले द्रव में नियत वेग v से गति करती है तो उस गति की विपरीत दिशा में एक श्यान बल F कार्य करता है जिसका परिमाण निम्न समीकरण द्वारा दिया जाता है –
F = 6πηrv
इसे ही स्टोक का नियम कहते है ।
स्टोक के नियम की शर्ते
- तरल या द्रव समांगी तथा श्यान हों।
- गोलाकार वस्तु का आकार अत्यन्त सूक्ष्म हो ।
- वस्तु छढ़ तथा उसका पृष्ठ चिकना हो।
- वस्तु का वेग तरल के क्रांतिक बेग से कम हो ।
- तरल का विस्तार अनन्त हो ।
स्टोक के नियम के अनुप्रयोग
स्टोक के नियम के निम्नअनुप्रयोग है –
- पैराशूट की सहायता से मनुष्य आसानी से पृथ्वी पर आ जाता है यह पैराशूट स्टोक के नियम पर ही आधारित होता है । मनुष्य जब पैराशूट के साथ हवाई जहाज से कूदता है तो प्रारंभ में गुरुत्वीय त्वरण ‘g’ से ही नीचे गिरता है परंतु कुछ समय बाद ही पैराशूट खुल जाता है और मनुष्य का त्वरण बहुत कम रह जाता है तथा वायु की श्यानता के कारण मनुष्य का त्वरण शीर्घ ही शून्य हो जाता है । मनुष्य की नीचे गिरने की चाल पैराशूट खुलने से पहले बहुत तेजी से परंतु पैराशूट खुलने के बाद बहुत धीरे-धीरे बढ़ती है ।
- बादलों का बनना भी स्टोक के नियम पर आधारित है। वायुमण्डल में उपस्थित जल की वाष्प धूल के कणों पर संघनित होकर छोटी – छोटी बूँदें बना लेती है। प्रारम्भ में ये बूँदें इतनी छोटी होती हैं कि इनकी नीचे की ओर चाल बहुत धीमी होती है जिस कारण ये आकाश में तैरती प्रतीत होती है। इन्हें ही हम बादल कहते हैं।