कोणीय संवेग को परिभाषित कीजिए। कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त लिखिए।

कोणीय संवेग (Angular Momentum)

जिस प्रकार से रेखीय गति में कण के द्रव्यमान तथा रेखीय वेग के गुणनफल को कण का रेखीय संवेग कहते है उसी प्रकार ” घूर्णन गति में, घूर्णन अक्ष के परितः कण के रेखीय संवेग के आघूर्ण को, कण का कोणीय संवेग कहते हैं।” इस J अथवा L द्वारा व्यक्त करते है कोणीय संवेग एक सदिश राशि है इसकी दिशा घूर्णन अक्ष के अनुदिश होती है।

J अथवा L = P X r

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कोणीय संवेग का मात्रक क्रिग्रा – मीटर2 – सेकण्ड-1 है तथा विमा [ML2T-1] है

कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त (Law Of Conservation Of Angular Momentum)

हम जानते हैं कि घूर्णन अक्ष के परितः किसी पिण्ड के कोणीय संवेग परिवर्तन की दर, उस पिण्ड पर लगे बाहरी बल आघूर्ण के बराबर होती है ।
अत:
dJ/ dt = 𝜏

यदि 𝜏 = 0 तब dJ/ dt = 0

चूंकि dJ = 0 ( क्योंकि dt ≠ 0, समय शून्य नहीं हो सकता है )

अर्थात J = नियत (Constant)
= Iω ( नियत )

यही कोणीय संवेग संरक्षण का नियम है अर्थात ” यदि किसी अक्ष के परितः घूमते हुए पिण्ड पर कोई बाहरी बल – आघूर्ण आरोपित न हो तो उस पिण्ड का कोणीय संवग ( J = Iω) नियत रहता है।

उदाहरण – : जब कोई तैराक स्वमिंग पूल में Diving – board से कूदता है तो प्रारम्भ में उसके हाथ – पैर फैले रहते है परन्तु जब वह हवा में कलाबाजी दिखाना चाहता है तो वह अपने हाथ – पैर सिकोड़ लेता है जिससे उसका जड़त्व आघूर्ण (I) कम हो जाता है और उसका कोणीय वेग (ω) बढ जाता है जिससे वह हवा में सरलतापूर्वक कलैया लेने लगता है। पानी में गिरने से कुछ क्षण पहले वह शरीर को पुनः सीधा कर लेता है जिससे जड़त्व आघूर्ण (I) बढ़ जाता है और ω घट जाता है ।

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